Should I be flattered or irked that my HINDI Article was plagiarised…by a HINDI language journalist?

Christine Fair
12 min readAug 5, 2021

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Can’t make this shit up.

C. Christine Fair

I’ve recently resolved to make a concerted effort to communicate the findings of my research into political and military affairs of South Asia in the languages of persons who are most affected by the things I study. I have spent years working in Hindi, Urdu and Punjabi and thus I have begun to submit work in those languages to vernacular presses.

A colleague of mine at the Gateway House passed on my piece to the Amar Ujala, a Hindi newspaper to see if they would be interested in running it. I would have been happy to modify it as needed.

While they did not publish the piece, one of their “journalists” named Jitendra Bhardwaj (pictured below) lifted it, added additional material to it, then claimed it as his own. I wrote to Mr. Bhardwaj on Facebook, tagging our mutual friends, and asked that he rectify this ethical violation by adding me as a co-author. This was actually a generous request given that I should have been the FIRST author given that most of the prose and intellectual capital in this “article” was mine. Of course, this hubristic individual demurred and even tried to bully me by insisting that I am in error in accusing him of unethical content. He explained that to avoid any controversy, he’s asked that it be pulled. (See the screenshot of this exchange.) Why would he prefer that it be pulled rather than give due credit?

In this post, I demonstrate how he stole my work. This is an object lesson to anyone else I catch doing it.

Photo of Jitendra Bhardwaj, available at https://spiderimg.amarujala.com/assets/images/2021/07/23/jitendra-bhardwaj_1627028623.jpeg.

Screenshot of our exchange on Facebook:

WHAT IS PLAGIARISM

According to Oxford University, plagiarism entails:

“presenting someone else’s work or ideas as your own, with or without their consent, by incorporating it into your work without full acknowledgment. All published and unpublished material, whether in manuscript, printed or electronic form, is covered under this definition. Plagiarism may be intentional or reckless, or unintentional. Under the regulations for examinations, intentional or reckless plagiarism is a disciplinary offence.”

In this essay, I demonstrate how Mr. Bhardwaj not only stole the essence of the work (as he has no previous history of writing on this issue), but he also reworded my words without attribution and, in places, even used my exact wording, also without attribution. He does quote me on occasion, but this is not a sufficient acknowledgment of my work and indeed it gives the illusion that he interviewed me, which is a further ethical violation.

HERE’S THE ANALYSIS THAT PROVES HE PLAGIARIZED MY WORK.

In his opening paragraph, he writes:

“साउथ एशियन पॉलिटिकल एंड मिलिट्री अफेयर की अमेरिकी विशेषज्ञ सी. क्रिस्टीन फैर का कहना है कि पाकिस्तान द्वारा खालिस्तानी समूह तैयार किए जा रहे हैं।“

Here he attributes to me my own work but uses the verb “ कहना,” (which means “says”) which implies that he interviewed me. He does this in the first paragraph.

He then goes on to use my language making only one insignificant change.

In his article:

“विभिन्न पाकिस्तानी अधिकारियों के हवाले से ऐसी खबरें आती रही हैं कि ‘करतारपुर कॉरिडोर’ पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के दिमाग की उपज है।”

This is virtually identical to what I wrote:

“विभिन्न पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा है कि “करतारपुर कॉरिडोर” पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के दिमाग की उपज है।”

In his article, this appears:

“लंबे समय तक राजनेता रहे शेख राशिद, जिन्होंने 1991 से कई संघीय मंत्री पद संभाले हैं और अब रेल मंत्री हैं, ने चुटकी लेते हुए कहा था कि भारत ‘करतारपुर कॉरिडोर’ को सर्वदा जनरल बाजवा द्वारा दिए गए गहरे घाव के रूप में याद रखेगा।“

I wrote:

“लंबे समय तक राजनेता रहे शेख राशिद, जिन्होंने 1991 से कई संघीय मंत्री पद संभाले हैं और अब एक रेल मंत्री हैं, ने चुटकी ली, “भारत करतारपुर कॉरिडोर को सर्वदा जनरल बाजवा द्वारा दिए गए गेहरे घाव के रूप में याद रखेगा। जनरल बाजवा ने करतापुर कॉरिडोर खोलके भारत पे एक जोरदार प्रहार किया है।“

He then gives the impression that we spoke. He writes:

“बतौर सी. क्रिस्टीन फैर, भारत की आंतरिक सुरक्षा स्थिति के विद्वानों और विश्लेषकों की भी यही चिंता है कि क्या ‘करतारपुर कॉरिडोर’ हकीकत में खालिस्तान कॉरिडोर तो नहीं बन जाएगा। ऐसी चिंताएं निराधार नहीं हैं।”

But in fact, he has simply plagiarized from another part of my essay in which I write:

“लेकिन भारत की आंतरिक सुरक्षा स्थिति के विद्वानों और विश्लेषकों को चिंता है कि “करतारपुर कॉरिडोर” हक़ीक़त में “खालिस्तान कॉरिडोर” बन जाएगा। ये चिंताएं निराधार नहीं हैं|”

Again, he implies that he spoke to me and that I merely augmented his knowledge rather than my writing being the sole source of the same:

“एनआईए द्वारा पंजाब में पन्नू की कई संपत्तियां जब्त की गई हैं। साउथ एशियन पॉलिटिकल एंड मिलिट्री अफेयर की अमेरिकी विशेषज्ञ सी. क्रिस्टीन फैर के अनुसार, करतारपुर साहिब को सिखों द्वारा उच्च सम्मान में रखा जाता है, क्योंकि यह उस स्थान पर बनाया गया है जहां गुरुनानक ने पहले सिख समुदाय की स्थापना की थी। सिख संगत इस बात को लेकर खुश है कि वह पाकिस्तान में इस पवित्र स्थान पर माथा टेकने के लिए जा सकेंगे। भारत की आंतरिक सुरक्षा स्थिति के विद्वानों और विश्लेषकों को चिंता है कि ‘करतारपुर कॉरिडोर’ हकीकत में खालिस्तान कॉरिडोर बन जाएगा।”

In fact, he has simply plagiarized this entire section from my essay, omitting some details:

“करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन सिखों के पहले गुरु, नानक की 550वीं जयंती के तीन दिन पूर्व 9 नवंबर, 2019 को किया गया था। विशेष अनुमति प्राप्त सिख तीर्थयात्री, सिखों के दो प्रमुख धार्मिक स्थल — भारत में रावी नदी के तट पर सिख धर्म का सबसे पवित्र स्थल, डेरा बाबा साहिब और पाकिस्तान के शकरगढ़ में स्थित श्री करतापुर साहिब के बीच की 9 किमी (5.6 मील) की दूरी तय कर सकेंगे। गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब को सिखों द्वारा उच्च सम्मान में रखा जाता है क्योंकि यह उस स्थान पर बनाया गया है जहां गुरु नानक ने पहले सिख समुदाय की स्थापना की थी |

बड़ी संख्या में सिख इस बात को लेकर खुश हैं की वे पाकिस्तान में इस पवित्र स्थान पर मथा टेकने के लिए सफ़र कर सकेंगे| लेकिन भारत की आंतरिक सुरक्षा स्थिति के विद्वानों और विश्लेषकों को चिंता है कि “करतारपुर कॉरिडोर” हक़ीक़त में “खालिस्तान कॉरिडोर” बन जाएगा। ये चिंताएं निराधार नहीं हैं|”

Again, he cites my name to further the illusion that we spoke:

सी. क्रिस्टीन फैर के मुताबिक, पंजाब में 1992 के विवादित चुनावों के बाद खालिस्तान की हिंसापूर्ण इंसर्जेन्सी लगभग समाप्त हो गई थी। पिछले एक दशक से इस हिंसक आंदोलन और उसके सबसे प्रमुख (आतंकवादी) नेता, जरनैल सिंह भिंडरावाले के राजनीतिक अस्तित्व को भारत में पुनर्जीवित किया गया है। यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा के सिख डायस्पोरा और अन्य जाट सिख समुदायों का उत्साह इसके क्रूर आतंकवाद के लिए जारी है। भिंडरावाले की तस्वीर वाली टी-शर्ट, पोस्टर और अन्य सामान सिख धर्म के सबसे पवित्र मंदिर श्रीहरमंदिर साहिब एवं भारत के विभिन्न गुरुद्वारों के आसपास के बाजारों में बेचा जा रहा है। कई गुरुद्वारों में सिखों के एतिहासिक शहीदों की तस्वीर में भिंडरावाले को जोड़ा हुआ है। हालांकि, सबसे चिंताजनक बात यह है कि हाल के वर्षों में भारत में दर्जनों खालिस्तानी हमले हुए हैं। ये घटनाएं जनवरी 2009 और 25 जनवरी 2019 के बीच हुई हैं। लालक़िला पर उपद्रव के बाद अब पन्नू संसद सत्र के दौरान किसानों को उसका रहा है।”

In fact, he has simply plagiarized my own words again. He has made negligible revisions to my words. This is what I wrote; however I provided a chart that summarized the results of data my colleagues and I collected and analyzed.

“पंजाब में 1992 के विवादित चुनावों के बाद खालिस्तान की हिंसापूर्ण इंसर्जेन्सी लगभाग समाप्त हो गई थी लेकिन पिछले एक दशक से इस हिंसक आंदोलन और उसके सबसे प्रमुख (आतंकवादी) नेता, जरनैल सिंह भिंडरावाले के राजनीतिक अस्तित्व को भारत में पुनर्जीवित किया गया है। यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा के सिख डायस्पोरा और अन्य जाट सिख समुदायों का उत्साह इसके क्रूर आतंकवाद के लिए जारी है। भिंडरांवाले की तस्वीर वाली टी-शर्ट, पोस्टर और अन्य सामान सिख धर्म के सबसे पवित्र मंदिर श्री हरमंदिर साहिब एवं भारत के विभिन्न गुरुद्वारों के आसपास के बाजारों में बेचा जा रहा है। कई गुरुद्वारों में सिखों के ऐतिहासिक शहीदों की तस्वीर में भिंडरावाले को जोड़ा हुआ है। हालांकि, सबसे चिंताजनक बात यह है कि हाल के वर्षों में भारत में दर्जनों खालिस्तानी हमले हुए हैं और कई और जिन्हें सुरक्षा बलों ने बाधित किया है। (नीचे चार्ट देखें)।“

Here again, he plagiarizes my prose with impunity and without shame. In some cases, he changes the wording but in many more cases he just ripped me off. Whereas, I provided a link to the article which formed the basis of my assessment, he does not. Here is what appeared in his article:

“पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा है कि ‘करतारपुर कॉरिडोर’ पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के दिमाग की रणनीति का एक हिस्सा है। दरअसल, जनरल बाजवा ने करतापुर कॉरिडोर खोल कर भारत पर एक जोरदार प्रहार किया है। पाकिस्तानी सेना भारत के साथ अपने संबंधों को बहाल करने के लिए तब तक कोई कदम नहीं उठाएगी, जब तक कि इस तरह के प्रयास उसके रणनीतिक उद्देश्यों को आगे नहीं बढ़ाते। चिंता का दूसरा कारण यह है कि ‘इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस निदेशालय (आईएसआई, पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी) ने सिख प्रवासी (यानी डायस्पोरा) के बीच खालिस्तान के लिए समर्थन जुटाया है, जो अकसर भारत विरोधी कश्मीरी समूहों के साथ होता है। यहीं से पाकिस्तान ने एक अन्य जंग भी छेड़ रखी है। यह जंग ड्रग्स को लेकर लड़ी जा रही है।”

This is what I wrote in the article that was sent to his paper:

“इसके अलावा, विद्वान और विश्लेषक पाकिस्तानी अधिकारियों के स्पष्ट स्वीकारोक्ति के बारे में चिंतित हैं, जिसमें विभिन्न पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा है कि “करतारपुर कॉरिडोर” पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के दिमाग की उपज है। लंबे समय तक राजनेता रहे शेख राशिद, जिन्होंने 1991 से कई संघीय मंत्री पद संभाले हैं और अब एक रेल मंत्री हैं, ने चुटकी ली, “भारत करतारपुर कॉरिडोर को सर्वदा जनरल बाजवा द्वारा दिए गए गेहरे घाव के रूप में याद रखेगा। जनरल बाजवा ने करतापुर कॉरिडोर खोलके भारत पे एक जोरदार प्रहार किया है।“ पाकिस्तानी सेना भारत के साथ अपने संबंधों को बहाल करने के लिए तब तक कोई कदम नहीं उठाएगी ज आंतरिक ब तक कि इस तरह के प्रयास उसके रणनीतिक उद्देश्यों को आगे नहीं बढ़ाते।

चिंता का एक और कारण यह है कि “इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस निदेशालय (आई.एस.आई., पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी) ने सिख प्रवासी (यानी” डायस्पोरा “) के बीच खालिस्तान के लिए समर्थन जुटाया है, जो अक्सर भारत विरोधी कश्मीरी समूहों के साथ होता है।

इस से मज़ीद, पाकिस्तान एक और तरह की जंग छेड़ रहा है और यह जंग ड्रग्स के खिलाफ लड़ी जा रही है.”

He then continues to plagiarize my work on Punjab’s drug addiction:

“साल 2015 में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने एक अध्ययन प्रकाशित किया था। इसमें कहा गया कि पंजाब में क़रीब दो करोड़ अस्सी लाख लोग ड्रग्स के आदी हैं। अनेक सबूतों के अनुसार इस्लामिक आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और पाकिस्तान में रहने वाले खालिस्तानी कार्यकर्ताओं में सहयोग और सांठ-गांठ जारी है। वहां पर खालिस्तानी कार्यकर्ता (गोपाल सिंह चावला) करतारपुर कॉरिडोर की कार्रवाई में अहम सदस्य रहा था। सी. क्रिस्टीन फैर कहती हैं, पाकिस्तान इन खालिस्तानी समूहों के साथ साजिश करने की तैयारी कर रहा है। दशकों से जिन खालिस्तानी समूहों का पाकिस्तान विकास कर रहा था, अब वह बेहद अहम हो गया है। खासतौर से भारत सरकार को ‘करतारपुर कॉरिडोर’ के संदर्भ में गहराई से सोचना होगा।“

This is what I wrote. Note that again, he has simply stolen my verbiage with a few notable differences. Whereas I provide a link to the source upon which my claim is based, he doesn’t:

“2015 में, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने एक अध्ययन प्रकाशित किया जिसमें कहा गया कि पंजाब में 28 मिलियन लोग आदी हैं। अनेक सबूतों के अनुसार इस्लामिक आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एल. ई. टी.) और पाकिस्तान में रहने वाले खालिस्तानी कार्यकर्ताओ में सहयोग और साँठ गाँठ जारी है | इसके अलावा, कई पाकिस्तान में रहने वाले खालिस्तानी कार्यकर्ता (गोपाल सिंह चावला) करतारपुर कॉरिडोर की कार्रवाइओं में अहम सदस्य थे |

पाकिस्तान इन खालिस्तानी समूहों के साथ साजिश बनाने का अभिरोचन सरल है: लश्कर और दीगर इस्लामी समूहों के इस्तेमाल करने का कारण, पाकिस्तान के ऊपर लगातार अंतर्रराष्ट्रीय दबाव लगाया जाता है| इसलिए, दशकों से जिन खालिस्तानी समूहों को पाकिस्तान विकास कर रहा था, अब वे बेहद अहम हो गया है|”

MY QUESTIONS FOR THE EDITORS OF AMAR UJALA

So what exactly is his contribution to this article? And if my words were worthy of being stolen by him in such measure, why didn’t he simply propose that we co-author the piece and thank me instead of stealing my work? Surely, his editor saw his piece and knew the similarities to the one I submitted including extended verbiage often with little or not modification. This is straight up plagiarism and I’m sure he’s a dude and because he thought he wouldn’t be caught. Also, what kind of a lousy Hindi journalist STEALS the verbiage of a person who is writing Hindi as a non-native writer?

HERE IS MY ANALYTICAL PIECE, SENT TO HIS PAPER

खालिस्तान की वापसी?

सी. क्रिस्टीन फ़ैर

करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक की 550वीं जयंती के तीन दिन पूर्व 9 नवंबर, 2019 को किया गया था। विशेष अनुमति प्राप्त सिख तीर्थयात्री, सिखों के दो प्रमुख धार्मिक स्थल — भारत में रावी नदी के तट पर सिख धर्म का सबसे पवित्र स्थल, डेरा बाबा साहिब और पाकिस्तान के शकरगढ़ में स्थित श्री करतापुर साहिब के बीच की 9 किमी (5.6 मील) की दूरी तय कर सकेंगे। गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब को सिखों द्वारा उच्च सम्मान में रखा जाता है क्योंकि यह उस स्थान पर बनाया गया है जहां गुरु नानक ने पहले सिख समुदाय की स्थापना की थी।

बड़ी संख्या में सिख इस बात को लेकर खुश हैं की वे पाकिस्तान में इस पवित्र स्थान पर मथा टेकने के लिए सफ़र कर सकेंगे| लेकिन भारत की आंतरिक सुरक्षा स्थिति के विद्वानों और विश्लेषकों को चिंता है कि “करतारपुर कॉरिडोर” हक़ीक़त में “खालिस्तान कॉरिडोर” बन जाएगा। ये चिंताएं निराधार नहीं हैं|

पंजाब में 1992 के विवादित चुनावों के बाद खालिस्तान की हिंसापूर्ण इंसर्जेन्सी लगभाग समाप्त हो गई थी लेकिन पिछले एक दशक से इस हिंसक आंदोलन और उसके सबसे प्रमुख (आतंकवादी) नेता, जरनैल सिंह भिंडरावाले के राजनीतिक अस्तित्व को भारत में पुनर्जीवित किया गया है। यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा के सिख डायस्पोरा और अन्य जाट सिख समुदायों का उत्साह इसके क्रूर आतंकवाद के लिए जारी है। भिंडरांवाले की तस्वीर वाली टी-शर्ट, पोस्टर और अन्य सामान सिख धर्म के सबसे पवित्र मंदिर श्री हरमंदिर साहिब एवं भारत के विभिन्न गुरुद्वारों के आसपास के बाजारों में बेचा जा रहा है। कई गुरुद्वारों में सिखों के ऐतिहासिक शहीदों की तस्वीर में भिंडरावाले को जोड़ा हुआ है। हालांकि, सबसे चिंताजनक बात यह है कि हाल के वर्षों में भारत में दर्जनों खालिस्तानी हमले हुए हैं और कई और जिन्हें सुरक्षा बलों ने बाधित किया है। (नीचे चार्ट देखें)।

लेख-चित्र १: जनवरी 2009 और 25 जनवरी 2019 के बीच प्रति वर्ष पुष्टि की गई घटनाएं (संदिग्धों को छोड़कर)

इसके अलावा, विद्वान और विश्लेषक पाकिस्तानी अधिकारियों के स्पष्ट स्वीकारोक्ति के बारे में चिंतित हैं, जिसमें विभिन्न पाकिस्तानी अधिकारियों ने कहा है कि “करतारपुर कॉरिडोर” पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के दिमाग की उपज है। लंबे समय तक राजनेता रहे शेख राशिद, जिन्होंने 1991 से कई संघीय मंत्री पद संभाले हैं और अब एक रेल मंत्री हैं, ने चुटकी ली, “भारत करतारपुर कॉरिडोर को सर्वदा जनरल बाजवा द्वारा दिए गए गेहरे घाव के रूप में याद रखेगा। जनरल बाजवा ने करतापुर कॉरिडोर खोलके भारत पे एक जोरदार प्रहार किया है।“ पाकिस्तानी सेना भारत के साथ अपने संबंधों को बहाल करने के लिए तब तक कोई कदम नहीं उठाएगी जब तक कि इस तरह के प्रयास उसके रणनीतिक उद्देश्यों को आगे नहीं बढ़ाते।

चिंता का एक और कारण यह है कि “इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस निदेशालय (आई.एस.आई., पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी) ने सिख प्रवासी (यानी” डायस्पोरा “) के बीच खालिस्तान के लिए समर्थन जुटाया है, जो अक्सर भारत विरोधी कश्मीरी समूहों के साथ होता है।

इस से मज़ीद, पाकिस्तान एक और तरह की जंग छेड़ रहा है और यह जंग ड्रग्स के खिलाफ लड़ी जा रही है. 2015 में, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने एक अध्ययन प्रकाशित किया जिसमें कहा गया कि पंजाब में 28 मिलियन लोग आदी हैं। अनेक सबूतों के अनुसार इस्लामिक आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एल. ई. टी.) और पाकिस्तान में रहने वाले खालिस्तानी कार्यकर्ताओ में सहयोग और साँठ गाँठ जारी है | इसके अलावा, कई पाकिस्तान में रहने वाले खालिस्तानी कार्यकर्ता (गोपाल सिंह चावला) करतारपुर कॉरिडोर की कार्रवाइओं में अहम सदस्य थे |

पाकिस्तान इन खालिस्तानी समूहों के साथ साजिश बनाने का अभिरोचन सरल है: लश्कर और दीगर इस्लामी समूहों के इस्तेमाल करने का कारण, पाकिस्तान के ऊपर लगातार अंतर्रराष्ट्रीय दबाव लगाया जाता है| इसलिए, दशकों से जिन खालिस्तानी समूहों को पाकिस्तान विकास कर रहा था, अब वे बेहद अहम हो गया है|

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Written by Christine Fair

I study South Asian pol-mil affairs. I'm a foodie, pit bull advocate, scotch lover. Views are my own. RT ≠ endorsements. Ad hominem haters are blocked ASAP!

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